दिल भी न जाने किस किस तरह ठगता चला गया…, कोई अच्छा लगा और बस…लगता चला गया…!
Category: वक़्त शायरी
दो निवालों के खातिर
दो निवालों के खातिर मार दिया जिस परिंदे को.. बहुत अफ़सोस हुआ ये जान कर वो भी दो दिन से भूखा था|
कुछ चीज़े कमज़ोर की
कुछ चीज़े कमज़ोर की हिफाज़त में भी महफूज़ हैं … जैसे, मिट्टी की गुल्लक में लोहे के सिक्के ….
लबों से गाल फिर
लबों से गाल फिर सफ़र तेरी नज़र तक का .. तौबा,बहुत कम फ़ाँसलें पर इतने मयख़ाने नहीं होते …
लिखते जा रहे हो
लिखते जा रहे हो साहब मोहब्बत हो गई..या खो गई है|
आजकल रिश्ते नाते
आजकल रिश्ते नाते, रोटी से हो गये, थोड़ी सी आँच बढ़ी, और जल गये
देर तलक सोने की आदत
देर तलक सोने की आदत छूट गयी माँ का आँचल छूटा जन्नत छूट गयी बाहर जैसा मिलता है खा लेते हैं घर छूटा खाने की लज़्ज़त छूट गयी
एक लाइन में
एक लाइन में क्या तेरी तारीफ़ लिखूँ……… पानी भी जो देखे तुझे तो प्यासा हो जाये…..
दिल ऐसी शय नही जो
दिल ऐसी शय नही जो काबू में रह सके…समझाऊ किस कदर किसी बेखबर को मैं…!!
जंजीरे बदली जा रही थी..
फ़क़त सिर्फ जंजीरे बदली जा रही थी… और मैं समझ बैठा के रिहाई हो गई है…..