इतेफाक देखिये शायर ने

इतेफाक देखिये शायर ने शायर के नज्म को देखा इतमिनान से हैं वो जिसे शायर ने अपनी नज़्म में देखा|

सज़ा ये दी है

सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें, क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे…

दर्द ओढ़ता हूँ

दर्द ओढ़ता हूँ तेरे और यादें बिछाता हूँ अकेला अब भी नहीं तेरे जाने के बाद…..

उम्र भर चल के

उम्र भर चल के भी पाई नहीं मंज़िल हम ने, कुछ समझ में नहीं आता ये सफ़र कैसा है…

सिर्फ वक्त ही

सिर्फ वक्त ही गुजारना हो तो किसी और को आजमा लेना, हम तो चाहत और दोस्ती दोनों इबादत की तरह करते है|

सिखा दिया हैं

सिखा दिया हैं जहाँ ने, हर जख्म पे हसना….!! ले देख जिन्दगी, अब मै तुझ से नही डरता….!!

ज़रा अल्फ़ाज़ के

ज़रा अल्फ़ाज़ के नाख़ून तराशों बहुत चुभते है……. जब नाराज़गी से बातें करती हो….!!

उफ़ ये रोज़ रोज़

उफ़ ये रोज़ रोज़ ख़ुद से बातें बगावत की उफ़ ये रोज़ रोज़ तुझ बिन रातें आमावस की|

कैसे नादान है

कैसे नादान है हम लोग .. दुख आता है तो अटक जाते है । सुख आता है तो भटक जाते है ।

बदला पाने की

बदला पाने की इच्छा रहित जो भलाई की गई है, वह समुद्र की तरह महान है…!!!

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