यूँ नहीं, मिलते हैं यार यार से दे मुझे, प्यार का जवाब प्यार से….
Category: पारिवारिक शायरी
बदनाम कर रहा हे
बदनाम कर रहा हे ये शहर मुझे तेरा नाम लेकर .. एक तुझसे महोब्बत ना होती तो आग लगा देते पुरे शहर मे
दिल में रहते थे
दिल में रहते थे जो नजरों से उतर गए रिश्ते जैसे काँच के टुकड़े, ठेस लगी और टूट गए।
कुछ भी बचा
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गयी, आओ कहीं शराब पियें रात हो गयी !!
आदमी परखने की
आदमी परखने की, ये भी एक निशानी है… गुफ़्तगु बता देती है, कि कौन खानदानी है…
ऐसा डूबा हूँ
ऐसा डूबा हूँ तेरी आँखों की गहराई में, हाथ में जाम है मगर पीने का होश नहीं!
रिश्ता मेरा भी हैं
कुछ तो रिश्ता तेरा भी हैं कुछ तो रिश्ता मेरा भी हैं तू आराम से सो जाती है। मैं हर रात बेचैन सा रहता हूँ…… ❗❗
वो रोये तो
वो रोये तो बहुत, पर मुझसे मुंह मोड़कर रोये…. कोई मजबूरी रही होगी, तभी मेरा दिल तोड़कर रोये। मेरे सामने कर दिए मेरी तस्वीर के कई टुकड़े…. पता चला मेरे पीछे से उन टुकड़ों को वो जोड़कर रोये।
तेरे नाम की
ऐसा नहीं, कि दिल में, तेरी तस्वीर नहीं थी…. पर हाथो में, तेरे नाम की, लकीर नहीं थी….
मेरे नगमों मे
मेरे नगमों मे जो बसती है वो तस्वीर थी वो नौजवानी के हसीन ख्वाब की ताबीर थी वो आसमानों से उतर आई थी जो रात की रात जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात