हमें पता है

हमें पता है …तुम… कहीं और के मुसाफिर हो .. हमारा शहर तो.. बस यूँ ही… रास्ते में आया था..!!

सुकून की कमी महसूस हो

जब तुम्हे सुकून की कमी महसूस हो तो अपने रब से तौबा किया करो…….. क्योकि इंसान के गुनाह ही है जो उसे बैचैन रखते है|

वो जो निकले थे

वो जो निकले थे घर से मशालें लेकर बस्तियां फूकने, अँधेरे मकान में अपनों को अकेला छोड़ आये हैं

अपने घर की तहज़ीब

ग़ुलाम हूँ अपने घर की तहज़ीब का वरना लोगों को औकात दिखाने का हूनर भी रखता हूँ|

ये तमन्ना भी नहीं

ये तमन्ना भी नहीं ..चाँद सितारा हो जाऊं हाँ अँधेरा हो कहीं तो मैं उजाला हो जाऊं|

घर से निकलो तो

घर से निकलो तो पता जेब में रखकर निकलो हादसे अक्सर चेहरे की पहचान मिटा दिया करते है..

मेरे मुकद्दर का भी

मेरे मुकद्दर का भी ये गिला रहा मुझसे किसी और का होता तो कब का संवर गया होता |

गले लगा के मुझे

गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है मैं डर रहा हूँ तुझे हाल-ए-दिल सुनाने से|

कुछ कमी सी है

जाने क्यूँ कुछ कमी सी है, तुम भी हो मैं भी हूँ फिर हम क्यूँ नहीं|

कुछ फासले ऐसे भी

कुछ फासले ऐसे भी होते हैं जनाब…..जो तय तो नहीं होते ,मगर ….नजदीकियां कमाल की रखते हैं

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