कभी कभी धागे बड़े कमज़ोर चुन लेते है हम ! और फिर पूरी उम्र गाँठ बाँधने में ही निकल जाती है ….!!!
Category: वक्त-शायरी
तेरी शब मेरे
तेरी शब मेरे नाम हो जाये नींद मुझ पर हराम हो जाये लौट आता है घर परिन्दा भी इससे पहले कि शाम हो जाये
जो तुम्हारा था
जो तुम्हारा था ही नहीं उसे खोना कैसा,, जब रहना ही है तनहा तो रोना कैसा..
ये सोच कर
ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले..
दीवार क्या गिरी
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की.. लोगों ने मेरे आँगन से रास्ते बना लिए…
अब मौत से
अब मौत से कह दो कि नाराज़गी खत्म कर ले, वो बदल गयी है जिसके लिए हम ज़िंदा थे।
मैं ख़ामोशी तेरे मन की
मैं ख़ामोशी तेरे मन की तू अनकहा अलफ़ाज़ मेरा..! मैं एक उलझा लम्हा तू रूठा हुआ हालात मेरा..!!
आग लगे तो
आग लगे तो शायद अंधेरा पिघले तेरी चिता की कोख से जब सूरज निकले।
एक नींद है
एक नींद है जो रात भर नहीं आती और एक नसीब है जो पता नही कब से सो रहा है।
कुछ यादें गुमनाम
ना हमने चिट्ठी लिखी ना भेजे पैगाम बिना बुलाए आ गयीं कुछ यादें गुमनाम