मगरूर हो जाते

मगरूर हो जाते है,अक्सर, ज़माने में वही लोग…! जिन्हें मिलता है ज़्यादा उनकी “औकात” से…!!

रोता रहा रात भर

में रोता रहा रात भर पर ये फैसला ना कर सका …तू याद आ रही थी या में याद कर रहा था !!!

कर लेता हूँ बर्दाश्त

कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ.. की खुदा नूर भी बरसाता है … आज़माइशों के बाद…

फूल से मोहब्बत

खुसबू कैसे ना आये मेरी बातो से यारो, मैंने बरसो से एक ही फूल से मोहब्बत की है…….!!!!!!!!!

शख्सियत अच्छी होगी

शख्सियत अच्छी होगी तभी दुश्मन बनेंगे, वरना बुरे की तरफ देखता कौन है….

लफ्ज़ों में ज़िन्दगी

कितने कम लफ्ज़ों में ज़िन्दगी को बयान करूँ, चलो तुम्हारा नाम लेकर किस्सा ये तमाम करूँ…!

क्या मासूमियत है

ना जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर.. तेरे सामने आने से ज्यादा, तुझे छुपके देखना अच्छा लगता है ..

जॊ आँखॊं में

जॊ आँखॊं में देखकर ना समझ पाया प्यार, अब तुम ही बताओ उसे कैसे करु इजहार …॥

इतना भी प्यार

इतना भी प्यार किस काम का..भूलना भी चाहो तो नफरत की हद तक जाना पढ़े..!!

अपना कहने वाले

“जलने वालों” की दुआ से ही सारी बरकत है., वरना., अपना कहने वाले लोग तो याद भी नही करते..!!

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