इतनी ठोकरें देने के लिए, शुक्रिया ए-ज़िन्दगी चलने का न सही, सम्भलने का हुनर तो आ गया…….. !!
Category: दर्द शायरी
मेरे साथ बैठ के वक़्त
मेरे साथ बैठ के वक़्त भी रोया एक दिन। बोला बन्दा तू ठीक है …मैं ही खराब चल रहा हूँ।
इंसान में रब होता है
इंसान में रब होता है ये तो ठीक है .. लेकिन,,भाई ये इंसान कहां होता है l
कितने बरसों का सफर
कितने बरसों का सफर यूँ ही ख़ाक हुआ। ..जब उन्होंने कहा “कहो..कैसे आना हुआ ?
तुम ये कैसे जुदा हो
तुम ये कैसे जुदा हो गये?! हर तरफ़ हर जगह हो गये!! अपना चेहरा न बदला गया! आईने से ख़फ़ा हो गये!!
अगर अहसास बयां
अगर अहसास बयां हो जाते लफ्जों से तो…… फिर कौन करता कद्र…. खामोशियों की…..
आसमाँ की ऊंचाई
आसमाँ की ऊंचाई नापना छोड़ दे ए दोस्त…. ज़मीं की गहराई बढ़ा… अभी और नीचे गिरेंगे लोग
मंजिले तो हासिल
मंजिले तो हासिल कर ही लेगे, कभी किसी रोज,,, ठोकरे कोई जहर तो नही, जो खाकर मर जाऐगे…..
पानी फेर दो इन
पानी फेर दो इन पन्नो पर.. ताकि धुल जाये स्याही..! ज़िन्दगी फिर से लिखने का मन करता है.. कभी कभी..!!!
एक दिन हम
एक दिन हम मिलेंगे सूखे गुलाबों में, बारिश की बूंदों में, कलम में, किताबों में ।।