आराम से तन्हा कट रही थी तो अच्छी थी जिंदगी तू कहाँ, दिल की बातों में आ गयी|
Category: गुस्ताखियां शायरी
तजुर्बा एक ही काफी था
तजुर्बा एक ही काफी था बयान करने के लिए मैने देखा ही नहीं इश्क दोबारा करके !!
सब से ज्यादा
सब से ज्यादा “वजनदार” “खाली जेब” होती है साहब, चलना “मुश्किल” हो जाता है…
ना आसूंओं से
ना आसूंओं से छलकते हैं ना कागज पर उतरते हैं..* *दर्द कुछ होते हैं ऐसे जो बस भीतर ही भीतर पलते है..
उधेड़ देता है
उधेड़ देता है जमाना जब जज़्बात मेरे मैं कलम से अपने हालात रफू कर लेता हूँ।
धड़कनों को भी
धड़कनों को भी रास्ता दे दीजिये हुजूर, आप तो पूरे दिल पर कब्जा किये बैठे है….
तेरे गुरुर को देख कर
तेरे गुरुर को देख कर तेरी तमन्ना ही छोड़ दी हमने… ज़रा हम भी तो देखें कौन चाहता है तुम्हे हमारी तरह…
कभी मिल जाये
कभी मिल जाये तो पूछना है उससे… क्या अब भी मेरे नाम का रोज़ा रखती हो..
इन में दीखता है
इन में दीखता है मेरा चेहरा ज़माने भर को, अपनी आँखों की ज़रा नज़र उतरा कीजिये..
हम जिस के हो गए
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी|