ज़रा सी फैली स्याही है

ज़रा सी फैली स्याही है,ज़रा से बिख़रे हम भी हैं,
काग़ज़ पर थोड़े लफ़्ज़ भी है छुपे हुए कुछ ग़म भी हैं…

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