कुछ लॊग मुझे

कुछ लॊग मुझे अपना कहा करते थे… सच कहूँ… तॊ बस कहा करते थे…

दर्द छुपाते-छुपाते…

लॊग कहते है कि तुम मुस्कुराते बहुत हॊ, और एक हम है जॊ थक गए है दर्द छुपाते-छुपाते…

मैं खुश हूँ कि

मैं खुश हूँ कि उसकी नफ़रत का अकेला वारिस हूँ,,वरना मोहब्बत तो उसे कई लोगो से है।।

बंद करॊ बार-बार

यूँ ताकना बंद करॊ बार-बार इस आइने कॊ, नजर लगा दॊगी देखना मेरी इकलौती मॊहब्बत कॊ…!

मीठी सी ठंढक है

मीठी सी ठंढक है आज इन हवाओं में, तेरी याद से भरा दराज शायद खुला रह गया..

दीवाने लोग मेरी

दीवाने लोग मेरी कलम चूम रहे है तुम मेरी शायरी में वो असर छोड़ गई हो

सपनॊं के बिन

सपनॊं के बिन जैसे आँखॊं की कीमत कॊई ना, बस ऐसे ही हूँ मै तेरे बिन मेरी चाहत कॊई ना ॥

कितनी है कातिल ज़िंदगी

कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू….!! मर जाते हैं किसी पे लोग, जीने के लिये….!!

दिल तो तब

दिल तो तब खुश हुआ मेरा जब उसने कहा तुम्हे छोड़ सकती हूँ माँ-बाप को नही

बुरे आदमी के

बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बंद करना ही अच्छा है..

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