इस शहर में

इस शहर में मजदूर जैसा दर बदर कोई नहीं सैंकड़ों घर बना दिये पर उसका कोई घर नहीं

ताल्लुकात बढ़ाने हैं

ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो कुछ आदतें बुरी भी सीख लो..ऐब न हों.. तो लोग महफ़िलों में भी नहीं बुलाते…

तकदीरें बदल जाती हैं

तकदीरें बदल जाती हैं जब ज़िंदगी का कोई मकसद हो, वरना ज़िंदगी कट ही जाती है तकदीरों को इल्ज़ाम देते देते!

दुरुस्त कर ही लिया

दुरुस्त कर ही लिया मैंने नज़रिया अपना, कि दर्द न हो तो मोहब्बत मज़ाक लगती है!

न जाने कौन सी दौलत है

न जाने कौन सी दौलत है तेरे लफ़्ज़ों में, बात करते हो तो दिल खरीद लेते हो!

कितने गम दिये मैंने

कितने गम दिये मैंने, कितनी खुशी दी तुमने, मार्च का महीना आ गया है आ तू भी हिसाब कर ले…

निभाते नही है..

निभाते नही है..लोग आजकल..! वरना. इंसानियत से बड़ा रिश्ता कौन सा है..

हर शख्श नहीं होता

हर शख्श नहीं होता अपने चेहरे की तरह, हर इंसान की हकिकत उसके लहजे बताते है..

उस को भी हम से

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं, इश्क़ ही इश्क़ की कीमत हो ज़रूरी तो नहीं।

कहाँ तलाश करोगे

कहाँ तलाश करोगे तुम दिल हम जैसा.., जो तुम्हारी बेरुखी भी सहे और प्यार भी करे…!!

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