मैं शिकायत क्यों करूँ

मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है..!! तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद हैं.

मेरी आवारगी में

मेरी आवारगी में कुछ क़सूर अब तुम्हारा भी है, जब तुम्हारी याद आती है तो घर अच्छा नहीं लगता।

कागज पे तो

कागज पे तो अदालत चलती है, हमें तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर है..!!

है हमसफर मेरा तू..

है हमसफर मेरा तू.. अब…मंझिल-ऐ-जुस्तजू क्या…?? खुद ही कायनात हूँ… अब….अरमान-ऐ-अंजुमन क्या…

वो लम्हा ज़िन्दगी का

वो लम्हा ज़िन्दगी का बड़ा अनमोल होता है जब तेरी यादें, तेरी बातें , तेरा माहौल होता है

बहुत दिन हुए तुमने

बहुत दिन हुए तुमने, बदली नहीं तस्वीर अपनी! मैंने तो सुना था, चाँद रोज़ बदलता हैं चेहरा अपना!!

अगर फुर्सत के लम्हों मे

अगर फुर्सत के लम्हों मे आप मुझे याद करते हो तो अब मत करना.. क्योकि मे तन्हा जरूर हुँ, मगर फिजूल बिल्कुल नही.

कभी यूँ भी हुआ है

कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने… हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें..!!

कई रिश्तों को

कई रिश्तों को परखा तो नतीजा एक ही निकला, जरूरत ही सब कुछ है, महोब्बत कुछ नहीं होती…..

एक ताबीर की सूरत

एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर सो उठा लाया हूँ सब ख़्वाब पुराने वाले

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