दो आँखो में…

दो आँखो में…दो ही आँसू.. एक तेरे लिए, एक तेरी खातिर..!!

रोज़ आते है

रोज़ आते है बादल अब्र ए रहेमत लेकर…! मेरे शहर के आमाल उन्हे बरसने नही देते..

जिन की यादों से

जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें दिल कहता है उनको भी मैं याद आता हूँ

मोहोबत दिल में

मोहोबत दिल में दोनों के लिए यकसां है कभी हम हाथ में गीता,कभी कुरआन लेते हैं।

तेरे वादों ने हमें घर से

तेरे वादों ने हमें घर से निकलने न दिया, लोग मौसम का मज़ा ले गए बरसातों में|

ज़ख़्मों के बावजूद

ज़ख़्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख…. तू हँसी तो मैं भी तेरे साथ हँस दिया….!!

आग पर चलना पड़ा है

आग पर चलना पड़ा है तो कभी पानी पर गोलियां खाई हैं फ़नकारो नै पेशानी पर

खुबसूरती से धोका ना खाईए

खुबसूरती से धोका ना खाईए साहब… तलवार कितनी भी खुबसूरत हो मांगती तो खून हि है…

बदनसीब मैं हूँ

बदनसीब मैं हूँ या तू हैं, ये तो वक़्त ही बतायेगा…बस इतना कहता हूँ,अब कभी लौट कर मत आना…

उनका इल्ज़ाम लगाने का

उनका इल्ज़ाम लगाने का अन्दाज़ गज़ब था… हमने खुद अपने ही ख़िलाफ,गवाही दे दी..

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