क्या बताएँ अपनी

क्या बताएँ अपनी दास्ताँ तुम्हें छोड़ो बात एक दिन पुरानी है…. ज़िस्म के एक हिस्से में दर्द बेझिल और आँख में पानी है|

एकांत को पिघला कर

एकांत को पिघला कर उसमें व्यस्त रहता हूँ, इन्सान हूँ मुरझा कर भी मस्त रहता हूँ

बेइंतेहा प्यार करते है

बेइंतेहा प्यार करते है हम आप से, पर इज़हार ना करेंगे कभी|

दुनियाँ वाले कहते है

दुनियाँ वाले कहते है उन्हें…की मुझमे उनके लिए प्यार नही दिखता…. जब तुम ही नही समझे तो दुनियाँ वाले क्या ख़ाक समझेंगे|

दफ़न कर लिया

दफ़न कर लिया उन लफ्ज़ो को जो कहती थी बात मेरे दिल की|

तेरे चेहरे पे

तेरे चेहरे पे ये शिकन हमें मंजूर नही…. सुनों तुम खुश रहा करो मैं रहूँ न रहूँ|

दिल में ना जाने

दिल में ना जाने क्या क्या दबा रखा है अब वो ना मुस्कुराते है ना रोते है|

ये एक ऐसी ख़्वाहिश

ये एक ऐसी ख़्वाहिश जो मिटती ही नही हौले से छुआ था कल रात तुझे ख्वाबों में जी भर के तुझे देख लिया इतने करीब थे तुम फिर भी नज़र है कि तुझसे हटती नही|

है तुमसे गुज़ारिश

है तुमसे गुज़ारिश आख़िरी, मिल जाओ मुझे तुम फिर पहली मोहब्बत की तरह|

एक वक़्त पर

सुबह शाम एक एक वक़्त पर दिख जाया करो मेरी जान,डॉक्टर ने कहा है दवा वक़्त पर लेते रहना|

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