ये क्यूँ था जनाज़े पे हुजुम मेरे? जबकि तन्हा तन्हा थी जिंदगी।
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चलने दो जरा आँधियाँ
चलने दो जरा आँधियाँ हकीकत की, न जाने कौन से झोंके मैं अपनो के मुखौटे उड़ जाये।
ख्वाहिशों की चादर
ख्वाहिशों की चादर तो कब की तार तार हो चुकी…!! देखते हैं वक़्त की रफूगिरि क्या कमाल करती हैं…!!
कैसे बदलदू मै
कैसे बदलदू मै फितरत ए अपनी मूजे तुम्हें सोचते रहनेकी आदत सी हो गई है
न छेड़ क़िस्सा वो
न छेड़ क़िस्सा वो उल्फत का, बड़ी लम्बी कहानी है ! मैं ज़िंदगी से नहीं हारा, बस किसी पे एतबार बहुत था…
मत पूछो कि
मत पूछो कि मै यह अल्फाज कहाँ से लाता हूँ, उसकी यादों का खजाना है, लुटाऐ जा रहा हूँ मैं….
कहीं किसी रोज
कहीं किसी रोज यूँ भी होता, हमारी हालत तुम्हारी होती जो रात हम ने गुजारी मर के, वो रात तुम ने गुजारी होती…
शायर तो कह रहा था
शायर तो कह रहा था कि हमने कहा है शेर और शेर कह रहा था चुराए हुए हैं हम….
हम रोने पे आ जाएँ
हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें, शबनम की तरह से हमें रोना नहीं आता…
मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है
मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है।