हस के चल दूँ

हस के चल दूँ मैं कांच के टुकडो परअगर दोस्त कह दे की ये तो मेरे बिछाए हुए फूल हैं…

कुछ देर तो हँस लेने दो

कुछ देर तो हँस लेने दो मुझे… हर पल कहाँ उसे मैं भूल पाता हूँ..!!

ना लफ़्ज़ों का

ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं, मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले…

ये दुनियावाले भी

ये दुनियावाले भी अजीब होते है दर्द आँखो से निकले तो कायर कहते है और बातों से निकले तो शायर कहते है

हम इतने मतलबी नहीं

हम इतने मतलबी नहीं की तुझे धोका दे..!! बस्स हमें समझना तेरे बस की बात नहीं….!!!

अब ये न पूछना की . .

अब ये न पूछना की . . ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के, कुछ अपना हाल सुनाता हूँ

उदास कर देती है

उदास कर देती है, हर रोज ये शाम मुझे .. यूँ लगता है, जैसे कोई भूल रहा हो, मुझे आहिस्ता आहिस्ता..!!

सोचा ना था

सोचा ना था वो शख्स भी इतना जल्दी साथ छोङ जाएगा…!!! . जो मुझे उदास देखकर कहता था…!!! “मैँ हू ना”…..

तरसते थे जो मिलने को

तरसते थे जो मिलने को हमसे कभी! आज वो क्यों मेरे साए से कतराते हैं! हम भी वही हैं दिल भी वही है! न जाने क्यों लोग बदल जाते हैं!

पलकों की हद को

पलकों की हद को तोड़कर दामन पे आ गिरा, एक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया !!!!

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