खाने पे टूट पड़े सब , क्या ख़ास – क्या आम …. चालीसवा था जिसका,वो भुखमरी से मर गया …
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ज़मीन वालों की
कोई वकालत नहीं चलती ज़मीन वालों की , जब कोई फैसला आसमान से उतरता है ..!!
प्यार से ना देखा
तेरे बाद किसी को प्यार से ना देखा हमने….. हमें इश्क का शौक है, आवारगी का नही…
उधार सा है…
कोई तो सूद चुकाये, कोई तो जिम्मा ले… उस इंकलाब का जो आज तक उधार सा है…
उनसे इश्क़ हुआ है..
सिर्फ रिश्ते टूटा करते हैं साहब, मुझे तो उनसे इश्क़ हुआ है..
लहू बेच-बेच कर
लहू बेच-बेच कर जिसने परिवार को पाला, वो भूखा सो गया जब बच्चे कमाने वाले हो गए…!!
मोहब्बत बढ़ती जायेगी।
हमने कब माँगा है तुमसे वफाओं का सिलसिला; बस दर्द देते रहा करो, मोहब्बत बढ़ती जायेगी।
लोग मुन्तजिर थे
लोग मुन्तजिर थे, मुझे टूटता हुआ देखने के, और एक मैं था, कि ठोकरें खा खा कर पत्थर का हो गया
तुमने भी हमें
तुमने भी हमें बस एक दिये की तरह समझा था, रात गहरी हुई तो जला दिया सुबह हुई तो बुझा दिया..
सच मानते थे
यही सोच कर उसकी हर बात को सच मानते थे के इतने खुबसूरत होंठ झूठ कैसे बोलेंगे