कभी जो मिलें फुरसत

कभी जो मिलें फुरसत तो बताना जरूर… वो कौन सी मौहब्बत थी जो मैं ना दे सका….

दिखाई देता नहीं

दिखाई देता नहीं दूर तक कोई मंज़र, वो एक धुंध मेरे आसपास छोड़ गया !

महफूज़ है सीने में. .

महफूज़ है सीने में. . . . और पुख्ता बहुत है, फिर क्यूँ ज़रा सी बात पे दिल दुखता बहुत है…!!

मैं चुप रहा

मैं चुप रहा और गलतफहमियां बढती गयी, उसने वो भी सुना जो मैंने कभी कहा ही नहीं…

आँखों में भी

आँखों में भी कुछ सपने सो जाते हैं सपनों में भी मुश्किल जब उनका आना लगता है….

अपनी हदों में

अपनी हदों में रहिए कि रह जाए आबरू, ऊपर जो देखना है तो पगड़ी सँभालिये

कोई वक़ालत नही चलती

कोई वक़ालत नही चलती ज़मीं वालो की जब कोई फैसला आसमाँ से उतरता है…!!!

खत क्या लिखा….

खत क्या लिखा….. मानवता के पते पर डाकिया ही गुजर गया पता ढूढते ढूढते…..

समझ ही नहीं पाता

कुछ रिश्तों के खत्म होने की वजह सिर्फ यह होती है कि.. एक कुछ बोल नहीं पाता और दुसरा कुछ समझ ही नहीं पाता।

ये क्यूँ था

ये क्यूँ था जनाज़े पे हुजुम मेरे? जबकि तन्हा तन्हा थी जिंदगी।

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