कल बड़ा शोर था मयखाने में, बहस छिड़ी थी जाम कौन सा बेहतरीन है, हमने तेरे होठों का ज़िक्र किया, और बहस खतम हुयी..
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गलती उनकी नहीं
गलती उनकी नहीं कसूरवार मेरी गरीबी थी दोस्तो हम अपनी औकात भूलकर बड़े लोगों से दिल लगा बैठे !!
मेरे ग़ज़लों में हमेशा
मेरे ग़ज़लों में हमेशा, ज़िक्र बस तुम्हारा रहता है… ये शेर पढ़के देखो कभी, तुम्हे आईने जैसे नज़र आएंगे|
चिँगारियोँ को हवा दे
चिँगारियोँ को हवा दे कर हम दामन नहीँ जलाते, बुलंद इरादे हमारे पूरे शहर मेँ आग लगाते हैँ..
सूरज रोज़ अब भी
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है …. तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …
शायरी उसी के
शायरी उसी के लबों पर सजती है साहिब.. जिसकी आँखों में इश्क़ रोता हो..
निर्धन दिल का है
निर्धन दिल का है धनी, और धनी है दीन। निर्धन दिल से साफ़ है, और धनी है हीन।। कोई किसका दास है, कोई किसका दास। मन फ़क़ीरी खिल्ल उठे, होवे कभी उदास।। देह काम करता नहीं, बुद्धि न देती साथ। जब भी मुँह खोलूँ सदा, निकले उलटी बात।।
अजब ये मुल्क़ है
अजब ये मुल्क़ है ऐसा हम जहाँ पे रहते हैं, इश्क़ छुपके यहाँ, नफ़रत खुलेआम होती है…!!
आग लगाना मेरी
आग लगाना मेरी फ़ितरत में नहीं.., पर लोग मेरी सादगी से ही जल जाये… उस में मेरा क्या क़सूर…!
कौन कहता है
कौन कहता है दुनिया में हमशक्ल नहीं होते देख कितना मिलता है तेरा “दिल” मेरे “दिल’ से.!