खूश्बु कैसे ना आये

खूश्बु कैसे ना आये मेरी बातों से यारों मैंने बरसों से एक ही फूल से जो मोहब्बत की है ।

हम कब के मर चुके

,हम कब के मर चुके थे जुदाई में ऐ अजल….जीना पड़ा कुछ और तेरे इन्तिजार में….

समुद्र बड़ा होकर भी

समुद्र बड़ा होकर भी, अपनी हद में रहता है, जबकि इन्सान छोटा होकर भी अपनी हद भूल जाता है…

तेरी शब मेरे

तेरी शब मेरे नाम हो जाये नींद मुझ पर हराम हो जाये लौट आता है घर परिन्दा भी इससे पहले कि शाम हो जाये

मेरी हर बात का

मेरी हर बात का जवाब रखते हो तुम क्या साथ में कोई किताब रखते हो तुम

मैं बंद आंखों से

मैं बंद आंखों से उसको देखता हूं हमारे बीच में पर्दा नहीं है|

ये सोच कर

ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले..

ज़िंदगी के दो पड़ाव

ज़िंदगी के दो पड़ाव अभी उम्र नहीं है अब उम्र नहीं है ।

जब हौसला बना

जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का… फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का…

अब मौत से

अब मौत से कह दो कि नाराज़गी खत्म कर ले, वो बदल गयी है जिसके लिए हम ज़िंदा थे​।

Exit mobile version