क्यूँ नहीं हो सकती मोहब्बत

क्यूँ नहीं हो सकती मोहब्बत ज़िंदगी में दोबारा, बस हौसला चाहिए फिर से बर्बाद होने के लिए।

लोग तलाशते है

लोग तलाशते है कि कोई फिकरमंद हो, वरना ठीक कौन होता है यूँ हाल पूछने से?

कभी जो मिलें फुरसत

कभी जो मिलें फुरसत तो बताना जरूर… वो कौन सी मौहब्बत थी जो मैं ना दे सका….

दिखाई देता नहीं

दिखाई देता नहीं दूर तक कोई मंज़र, वो एक धुंध मेरे आसपास छोड़ गया !

महफूज़ है सीने में. .

महफूज़ है सीने में. . . . और पुख्ता बहुत है, फिर क्यूँ ज़रा सी बात पे दिल दुखता बहुत है…!!

आँखों में भी

आँखों में भी कुछ सपने सो जाते हैं सपनों में भी मुश्किल जब उनका आना लगता है….

अपनी हदों में

अपनी हदों में रहिए कि रह जाए आबरू, ऊपर जो देखना है तो पगड़ी सँभालिये

कोई वक़ालत नही चलती

कोई वक़ालत नही चलती ज़मीं वालो की जब कोई फैसला आसमाँ से उतरता है…!!!

खत क्या लिखा….

खत क्या लिखा….. मानवता के पते पर डाकिया ही गुजर गया पता ढूढते ढूढते…..

ये क्यूँ था

ये क्यूँ था जनाज़े पे हुजुम मेरे? जबकि तन्हा तन्हा थी जिंदगी।

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