मकड़ी भी नहीं फँसती, अपने बनाये जालों में। जितना आदमी उलझा है, अपने बुने ख़यालों में…।।
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बेहिसाब हसरतें न पालिये
बेहिसाब हसरतें न पालिये. जो मिला है उसे संभालिये..!
कितना भी समेट लो..
कितना भी समेट लो.. हाथों से फिसलता ज़रूर है.. ये वक्त है साहब..बदलता ज़रूर है…
कुछ लोग दिखावे की
कुछ लोग दिखावे की, फ़क़त शान रखते हैं, तलवार रखें या न रखें, म्यान रखते है!
तेरी चाहत तो
तेरी चाहत तो मुक़द्दर है, मिले न मिले… राहत ज़रूर मिल जाती है, तुझे अपना सोच कर…
मेरी ख़ामोशी से
मेरी ख़ामोशी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता… और शिकायत में दो लफ्ज़ कह दूँ तो वो चुभ जातें है…!!!
ज़मीन से ही नज़र आता है
आसमान जो इतना बुलंदी पर इतराता है, भूल जाता है ज़मीन से ही नज़र आता है।
सुरमे की तरह
सुरमे की तरह पीसा है हमें हालातों ने, तब जा के चढ़े है लोगों की निगाहों में..
दिन ढले करता हूँ
दिन ढले करता हूँ बूढ़ी हड्डियों से साज़-बाज़…… जब तलक शब ढल नहीं जाती जवाँ रहता हूँ मैं…….
किताबों के पन्नो को
किताबों के पन्नो को पलट के सोचता हूँ, यूँ पलट जाए मेरी ज़िंदगी तो क्या बात है. ख्वाबों मे रोज मिलता है जो, हक़ीकत में आए तो क्या बात है….