सांसों में लोबान जलाना

सांसों में लोबान जलाना आखिर क्यों पल पल तेरी याद का आना आखिर क्यों…….

फिज़ूल हैं ना हम भी

कितने फिज़ूल हैं ना हम भी, देख तुझे याद तक नहीं आते..!!!

वक़्त का जहाज़

वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया |

दिल की दिवारो पर

फिर वार हुआ दिल की दिवारो पर… फिर ऐसे जख्म मिलें है कि हम मरहम ना ढुंढ पाए…

बेख़ौफ़ कहाँ आसान था

उड़ना…. बेख़ौफ़ कहाँ आसान था…. मन तभी चिड़िया हुआ जब तू आसमान था ….!

एक एक पन्ना

एक एक पन्ना हर कोई बांट लेते है मतलब की… सुबह-सुबह मां घर में अखबार जैसे हो जाती है…

सबूतों और गवाहों की साहब

सबूतों और गवाहों की साहब… यहाँ सेल नहीं होती, आपने जुर्म-ए-मोहब्बत किया है, इसमें बेल नहीं होती।

ये दिन अगर बुरे हैं

शाख़ें रहीं तो फूल और पत्ते भी ज़रूर आयेंगे… ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी ज़रूर आयेंगे…!!!

जरा देखो तो ये दरवाजे पर

जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है, अगर ‘इश्क’ हो तो कहना, अब दिल यहाँ नही रहता..

कैसे ज़िंदा रहेगी

कैसे ज़िंदा रहेगी तहज़ीब ज़रा सोचिये….. पाठशाला से ज़्यादा तो मधुशाला है शहर में..

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