परिंदे बे-ख़बर थे सब पनाहें कट चुकी हैं, सफ़र से लौट कर देखा कि शाख़ें कट चुकी हैं…
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सज़ा ये दी है
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें, क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे…
एक ही ख्वाब ने
एक ही ख्वाब ने, सारी रात जगाया है, मै ने हर करवट सोने की कोशिश की..
हर एक इसी उम्मीद मे
हर एक इसी उम्मीद मे चल रहा है जी रहा है, कुछ को उसुलो ने रोक रखा है कुछ को कुसूरो ने…
तुमको देखा तो
तुमको देखा तो मौहब्बत भी समझ आई, वरना इस शब्द की तारीफ ही सुना करते थे..!!
घेर लेती है
घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदन जान कर कोई गिरफ़्तार नहीं होता यार|
मेरी महोब्बत के
मेरी महोब्बत के अपने ही उसुल है… तुम करो न करो पर मुझे साँसो के टुटने तक रहेगी|
इस दुनिया में
इस दुनिया में अजनबी बने रहना ही ठीक है..लोग बहुत तकलीफे देते है “अक्सर अपना बना कर” ।
दर्द ओढ़ता हूँ
दर्द ओढ़ता हूँ तेरे और यादें बिछाता हूँ अकेला अब भी नहीं तेरे जाने के बाद…..
हम भी कैसे दिवाने निकले….
हम भी कैसे दिवाने निकले….. ए ज़िंदगी हम तुम्हें मनाने निकले….