हम जमाने की नज़र में थे

हम जमाने की नज़र में थे यकीनन, तेरी नज़र से पेश्तर, तेरी नज़र में जो आये, हो गए सुर्खरू पहले से भी बेहतर।

यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने का

यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने का मेरी काग़ज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते है..

आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को

आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को, सपनो के लिए तो ज़मी जरूरी है.. सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा, जीने के लिये

तेरी मोहब्बत-ए-हयात को..

तेरी मोहब्बत-ए-हयात को… लिखु किस गजल के नाम से….ღ ღ तेरा हुस्न भी जानलेवा…तेरी सादगी भी कमाल हैं…ღ

वह कितना मेहरबान था

वह कितना मेहरबान था, कि हज़ारों गम दे गया… हम कितने खुदगर्ज़ निकले, कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा।

मेरी ख्वाइश थी कि मुझे

मेरी ख्वाइश थी कि मुझे तुम ही मिलते, मगर मेरी ख्वाइशों की इतनी औकात कहाँ…..

बचपन जो नहीं रहा

आजकल आम भी खुद ही गिर जाया करते है पेड़ो से, क्योंकि उन्हें छिप छिप कर तोड़ने वाला बचपन जो नहीं रहा !!!

बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब

बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी

दिल करता है फुर्सत की

दिल करता है फुर्सत की नुक्कड़ पर बैठ कर, दो लम्हो के बीच में , कॉमा, लगाया जाये…!

जो ऊसूलों से लड़ पड़ी होगी

जो ऊसूलों से लड़ पड़ी होगी वो जरुरत बहुत बड़ी होगी, एक भूखे ने कर ली मंदिर में चोरी शायद भुख भगवान से बडी होगी….

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