मेरे ग़ज़लों में हमेशा, ज़िक्र बस तुम्हारा रहता है… ये शेर पढ़के देखो कभी, तुम्हे आईने जैसे नज़र आएंगे
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शायरी उसी के लबों पर
शायरी उसी के लबों पर सजती है साहिब.. जिसकी आँखों में इश्क़ रोता हो..
आईना बड़ी शिद्दत से
आईना बड़ी शिद्दत से वो अपने पास रखते हैं जिसमे देखकर अपनी सूरत वो खुद संवरते हैं दर्पण तो दर्पण है वो सबका अपना प्यारा है सम्हाल के रखना ये जल्दी टूटकर बिखरते हैं…
तलब नहीं कोई
तलब नहीं कोई हमारे लिए तड़पे , नफरत भी हो तो कहे आगे बढ़के.!!
आग लगाना मेरी
आग लगाना मेरी फ़ितरत में नहीं.., पर लोग मेरी सादगी से ही जल जाये… उस में मेरा क्या क़सूर…!!
जिसे शिद्दत से
जिसे शिद्दत से चाहो वो मुद्दत से मिलता है, बस मुद्दतों से ही नहीं मिला कोई शिद्दत से चाहने वाला!
कौन कहता है
कौन कहता है दुनिया में हमशक्ल नहीं होते देख कितना मिलता है तेरा “दिल” मेरे “दिल’ से.!
पता नही होश मे हूँ….
पता नही होश मे हूँ….. या बेहोश हूँ मैं….. पर बहूत सोच ……. समझकर खामोश हूँ मैं.
अगर तू आंसू है
अगर तू आंसू है तो फिर….. मेरा भी रोना जरूरी है….
तुझे तो मिल गये
तुझे तो मिल गये जीवन मे कई नये साथी, लेकिन…..मुझे हर मोड़ पऱ तेरी कमी अब भी महसूस होती है….!!