शायरी भी एक मीठा जुल्म है

शायरी भी एक मीठा जुल्म है करते रहो या ..या फिर …पढ़ते रहो….!!

नजाकत तो देखिये

नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा, चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा !!

कभी इश्क़ करो

कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से.. कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता…

कहाँ उलझा पड़ा है

कहाँ उलझा पड़ा है तू उन छोटी छोटी बातों में चल कोई बड़ी बात से हम अब ये रिश्ता ख़त्म करते हैं|

उन्होंने ये सोचकर

उन्होंने ये सोचकर अलविदा कह दिया कि गरीब है, मोहब्बत के अलावा क्या देगा

हुस्न वाले जब

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम.

कल रात मैंने

कल रात मैंने अपने सारे ग़म, कमरे की दीवार पर लिख डाले, बस फिर हम सोते रहे और दीवारे रोती रही.

अमीर-ए-शहर

अमीर-ए-शहर की हमदर्दियों से बच के रहो, ये सर से बोझ नहीं, सर उतार लेता है !

मेरा पीछा नहीं छोड़ा

ज़िंदगी ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा अब तक.. उम्र भर सर से न उतरी ये बला कैसी थी..?

सीखा है मैने ज़िन्दगी से

सीखा है मैने ज़िन्दगी से एक तजुर्बा…. ज़िम्मेदारी इंसान को वक़्त से पहले बड़ा बना देती है..

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