ख्वाब जो सलीके से

ख्वाब जो सलीके से तह कर रखे थे, मैने दिल की आलमारी में उनमे सिलवटें पड़ने लगी हैं, शायद इसलिये क्यूंकि इन पर पापा के डाँट की इस्त्री नहीं चलती अब…!!!

अंदर ही अंदर टूट जाते है घर

अंदर ही अंदर टूट जाते है घर, मकान खड़े के खड़े रह जाते है बेशर्मों की तरह…!!!

अपनो की कोई बात बुरी लगे

अपनो की कोई बात बुरी लगे तो आप खामोश हो जाईए, अगर वह अपने है तो समझ जाएंगे, अगर ना समझे तो आप समझ लेना, की वह अपने थे ही नही…

नादानियाँ झलकती हैं

नादानियाँ झलकती हैं अभी भी मेरी आदतों से, मैं खुद हैरान हूँ के मुझे इश्क़ हुआ कैसे…!!!

जलवे तो बेपनाह थे

जलवे तो बेपनाह थे इस कायनात में… ये बात और है कि नज़र तुम पर ही ठहर गई…!

चल उस मोड़ से शुरू करें

चल उस मोड़ से शुरू करें फिर से जिंदगी… हर लम्हा जहाँ हसीन था और हम-तुम थे अजनबी…!

इतनी चाहत तो लाखो रुपये

इतनी चाहत तो लाखो रुपये पाने की भी नही होती..!! जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती हैं..!!

कैसे ना मर मिटू उस पे यारो

कैसे ना मर मिटू उस पे यारो … रूठ कर भी कहता है संभल कर जाना…!

इक मुद्दत से किसी ने दस्तक नहीं दी है

इक मुद्दत से किसी ने दस्तक नहीं दी है । मैं उसके शहर में बंद मकान की तरह हूँ ।।

ना बुरा होगा ना बढ़िया होगा

ना बुरा होगा ना बढ़िया होगा, होगा वैसा, जैसा नजरिया होगा ।

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