दुनिया से बेखबर

दुनिया से बेखबर चल कही दूर निकल जाये

मेरी मुलाक़ात तुझसे

मेरी मुलाक़ात तुझसे अब तक अधूरी है, तू पास ही है मेरे, फिर क्यों ये दूरी है….

शीशा रहे बगल में

शीशा रहे बगल में, जामे शराब लब पर, साकी यही जाम है, दो दिन की जिंदगानी का…

वो देखें इधर तो

वो देखें इधर तो उनकी इनायत, ना देखें तो रोना क्या, जो दिल गैर का हो, उसका होना क्या, ना होना क्या…

अब तो अपनी परछाईं

अब तो अपनी परछाईं भी ये कहने लगी है , मैं तेरा साथ दूँगी सिर्फ उजालों में !!

अधूरेपन का मसला

अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल नहीं होता… कहीं आँखें नहीं होतीं, कहीं काजल नहीं होता…

ग़म मिलते हैं

ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी… ये बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया…

वो दास्तान मुकम्मल करे

वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का..

बुझा सका है

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले….. ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!

इस शहर के

इस शहर के अंदाज अजब देखे है यारों ! गुंगो से कहा जाता है, बहरों को पुकारो !!

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