वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी

वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से, वो और थे जो हार गए आसमान से…

उड़ने दो परिंदों को

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में, फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते…

तू कितनी भी

तू कितनी भी खुबसुरत क्यूँ ना हो ए ज़िंदगी खुशमिजाज़ दोस्तों के बगैर तु अच्छी नहीं लगती..!!

मैं उस किताब का

मैं उस किताब का पहला पन्ना हूं जिसके होने या नहीं होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता |

पत्थर उछालने से

पत्थर उछालने से कोई फल नहीं गिरा , शाख़ों से लेकिन उसने परिदें उड़ा दिये ।

जरा सोच कर करना…!!

साहिब इज्जत हो तो ईश्क जरा सोच कर करना…!! ये ईश्क अक्सर मुकाम ए जिल्लत पे ले जाता है…!!

जितनी मुहब्बत मिली

जितनी मुहब्बत मिली सब बाँट दी दुनियाँ बालो को जब मैने झोली फैलाई तो दर्द के सिवा कुछ न मिला

ज़रूरतों ने उनकी

ज़रूरतों ने उनकी, कोई और ठिकाना ढूंढ लिया शायद.. एक अरसा हो गया, मुझे हिचकी नहीं आई…

फिर कोई दुख मिलेगा

फिर कोई दुख मिलेगा तेयार रह.. ऐ..दिल… कुछ लोग पेश आ रहे हैं बहुत प्यार से !!!!

मेरे शहर में खुदाओं

मेरे शहर में खुदाओं, की कमी नही है.. दिक्कत तो मुझे आज भी, इंसान ढूंढ़ने में आती है..!!

Exit mobile version