ज़ख़्म इतने गहरे है हमको मालूम ना था
हम खुदी पर वार करते रहे यह ख़याल ना था
खुद ही लाश बन गये इस ख़याल से के जनाज़े पे
वो मेरे आएँगे अब इस से ज़्यादा उनके
दीदार का इंतिज़ार क्या करे|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ज़ख़्म इतने गहरे है हमको मालूम ना था
हम खुदी पर वार करते रहे यह ख़याल ना था
खुद ही लाश बन गये इस ख़याल से के जनाज़े पे
वो मेरे आएँगे अब इस से ज़्यादा उनके
दीदार का इंतिज़ार क्या करे|