यू तो अल्फाज नही हैं

यू तो अल्फाज नही हैं आज मेरे पास मेहफिल में सुनाने को, खैर कोई बात नही, जख्मों को ही कुरेद देता हूँ।

आंसू निकल पडे

आंसू निकल पडे ख्वाब मे उसको दूर जाते देखकर..!! आँख खुली तो एहसास हुआ इश्क सोते हुए भी रुलाता है..!!

रुकी-रुकी सी लग रही है

रुकी-रुकी सी लग रही है नब्ज-ए-हयात, ये कौन उठ के गया है मेरे सिरहाने से।

कल क्या खूब इश्क़ से

कल क्या खूब इश्क़ से मैने बदला लिया, कागज़ पर लिखा इश्क़ और उसे ज़ला दिया..!!

मुमकिन नहीं है

मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए किस्से लिखना, मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी महफ़िल सजाना सीख लो।

हम ने भी कह दिया

हम ने भी कह दिया उनसे की बहुत हो गयी जंग बस.. बस ए मोहब्बत तुझे फ़तेह मुबारक मेरी शिक्स्त हुई।

हम तो बिछडे थे

हम तो बिछडे थे तुमको अपना अहसास दिलाने के लिए, मगर तुमने तो मेरे बिना जीना ही सिख लिया।

काग़ज़ पे तो

काग़ज़ पे तो अदालत चलती है.. हमने तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर किये।

फ़िक्र तो तेरी

फ़िक्र तो तेरी आज भी है.. बस .. जिक्र का हक नही रहा।

कहीं फिसल न जाऊं

कहीं फिसल न जाऊं तेरे ख्यालों में चलते चलते, अपनी यादों को रोको मेरे शहर में बारिश हो रही है !!

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