जनाजा देखकर मेरा वो बेवफा बोल पड़ी, वही मरा है ना जो मुझ पर मरता था..
Category: Love Shayri
ग़लतफहमी की गुंजाइश
ग़लतफहमी की गुंजाइश नहीं सच्ची मुहब्बत में जहाँ किरदार हल्का हो कहानी डूब जाती है..
रात भर चाँद की
रात भर चाँद की ठंडक में सुलगता है बदन, कोई तन्हाई की दोज़ख से निकाले मुझ को……!!
ऐ काश ज़िन्दगी भी
ऐ काश ज़िन्दगी भी किसी अदालत सी होती,,, सज़ा-ऐ-मौत तो देती पर आख़िरी ख्वाइश पूछकर…
बताओ तो कैसे निकलता है
बताओ तो कैसे निकलता है जनाज़ा उनका,,, वो लोग जो अन्दर से मर जाते है…
अब तो पत्थर भी
अब तो पत्थर भी बचने लगे है मुझसे, कहते है अब तो ठोकर खाना छोड़ दे !
बड़ा गजब किरदार है
बड़ा गजब किरदार है मोहब्बत का, अधूरी हो सकती है मगर ख़तम नहीं…
मेरे यार मुझ को
मेरे यार मुझ को लूट के लौटे हैं अभी,,, मेरे दुश्मन तूने इस बार भी देर कर दी…
भीड़ यूँ ही
भीड़ यूँ ही नहीँ होती जनाज़े में साहेब. हर शख्श अच्छा होता है चले जाने के बाद.
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं, मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है…