मुद्दत हुई है

मुद्दत हुई है बिछड़े हुए अपने-आप से… देखा जो आज तुम को तो हम याद आ गए|

किसी ऐसे को ज़िंदा रख के

किसी ऐसे को ज़िंदा रख के दिखा जिसकी परवाह क़ुदरत ना करे… और किसी ऐसे से मुहब्बत कर के दिखा जो बदले में मुहब्बत ना करे|

गुर्बत ने मेरे बच्चो को

गुर्बत ने मेरे बच्चो को तहजीब सिखा दी सहमे हुए रहते हैं शरारत नही करते |

सोचा था उस से

सोचा था उस से बिछडेंगे तो मर जायेंगे हम जानलेवा खौफ था बस, हुआ कुछ भी नही|

सलीक़ा आ गया है

हम को टालने का शायद तुम को सलीक़ा आ गया है बात करते तो हो लेकिन , अब तुम अपने नहीं लगते |

ला तेरे पैरों में

ला तेरे पैरों में मरहम लगा दूँ ऐ दोस्त मेरे दिल को ठोकर मारने से चोट तो आई होगी

जिस को भी देखा

जिस को भी देखा उसे मुखलिस ही पाया बहुत फरेब दिया है मेरी निगाह ने मुझे|

नाम बदनाम होने की

नाम बदनाम होने की चिंता छोड़ दी मैंने… अब जब गुनाह होगा, तो मशहुर भी तो होगे…!

कुछ पेचीदा लफ्जों में

कुछ पेचीदा लफ्जों में मैंने अपनी बात रखी, जमाना हँसता गया, जज्बात रोते गये…!

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