दरों दीवार से

दरों दीवार से भी कोई बुलाता है मुझे तन्हाई बता मुझे मैं जाऊँ तो किधर जाऊँ…

सैर करती है

सैर करती है जब वो हवेली में चाँद भी खिड़कियां बदलता है

इसे नसीहत कहूँ

इसे नसीहत कहूँ या एक जुबानी चोट , एक शख्स कह गया गरीब मोहब्बत नहीं करते !

उनको तो फुरसत नहीं..

उनको तो फुरसत नहीं.. दीवारो तुम ही बात करो..

मोहब्बत बुरी है…

मोहब्बत बुरी है… बुरी है मोहब्बत, कहे जा रहे है… किये जा रहे है…

छुपे छुपे से रहते हैं

छुपे छुपे से रहते हैं सरेआम नहीं हुआ करते, कुछ रिश्ते बस एहसास होते हैं उनके नाम नहीं हुआ करते…..

समाए हो नजरों में

समाए हो नजरों में तुम और ये दिल भी मदहोश है , अपने एहसासों को लिखूं कैसे मेरी कलम खामोश है !

कैसे लिखूं अपने

कैसे लिखूं अपने जज्बातों को मैं, दिल अब उस मुकाम पर है , कि … अश्कों की रौशनाई सूख ही गयी है

लबों से गुफ्तगू

लबों से गुफ्तगू नहीं…आँखों का कलाम अच्छा है…. इन हुस्न वालों से बस…दूर का सलाम अच्छा है..

तुम्हारे बाद कैसे गुजरेंगे

तुम्हारे बाद कैसे गुजरेंगे हमारे दिन.. … नवम्बर से बचे तो दिसम्बर मार डालेगा. .

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