झुठी शान के परिंदे

झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं, तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती।

तमाम रिश्तों को

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया हूँ, उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला|

कोशिश करता हूँ

कोशिश करता हूँ कि अंधेरे खत्म हो लेकिन, कहीं जुगनू नही मिलता, कहीं चाँद अधूरा है।

उसे जो लिखना होता है

उसे जो लिखना होता है, वही वो लिख के रहती है, क़लम को सर कलम होने का कोई डर नहीं होता।

उस ज़ुल्फ़ के फंदे

उस ज़ुल्फ़ के फंदे से निकलना नहीं मुमकिन, हाँ माँग कोई राह निकाले तो निकाले|

इस दुनिया में

इस दुनिया में कुछ अच्छा रहने दो, बच्चों को बस बच्चे रहने दो|

आज लफ्जों को

आज लफ्जों को मय पीने बुलाया है, बात बन गयी तो जरूर गजल होगी ।

बहुत से कर्ज हैं

बहुत से कर्ज हैं चुकाने ऐ उम्र जरा ठहर जा। बात मान ले मेरी अब तो तू घर जा।

मैं क्यों कहूँ

मैं क्यों कहूँ उससे की मुझसे बात करो..! . क्या उसे नहीं मालूम की उसके बिना मेरा दिल नहीं लगता ….!!!!

अपने अहसासों को

अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने, क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!

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