लफ्ज़-ए-तसल्ली

लफ्ज़-ए-तसल्ली तो इक तक़ल्लुफ़ है साहिब, जिसका दर्द, उसी का दर्दबाक़ी सब तमाशाई..!!

तेरी कमी आज

तेरी कमी आज भी कोई पूरी नही कर सकता पता नहीं वजह तेरी खूबी है या मेरी कमजोरी..

कोई मजबूरी होगी

कोई मजबूरी होगी जो वफा कर ना सके!! !!मेरे मेहबूब को ना शामिल करो बेवफाओ में!!

हो ना जाए

हो ना जाए हुस्न की शान में गुस्ताख़ी कहीं मेरी जान तुम चले जाओ तुम्हे देखके प्यार आता है|

सारे जग की प्यास

सारे जग की प्यास बुझाना, इतना आसाँ काम है क्या? पानी को भी भाप में ढलकर बादल बनना पड़ता है|

आसमां में उड़ने

आसमां में उड़ने की चाह रखने वाले.. कभी जमीं पे गिरने की परवाह नहीं करते !!

इबादत की खुशबू

इबादत की खुशबू पहुँचे तुम तक अपने यकीन का इम्तिहान कर दूँ आज मैं अपने अश्क को गंगा और इश्क को कुरान कर दूँ |

तुम क्या बिछड़े

तुम क्या बिछड़े भूल गये रिश्तों की शराफ़त हम, जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है..!!

मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी

मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी मैं बेवफा नहीँ सुन यह वक्त बेवफा है मेंरी खता नहीँ । हैं फासले जो दर्मिया किस्मत का खेल है मैं रूह में शामिल हूँ तुझसे जुदा नहीँ । बीमार ए दिल हुआ है तेरी तलाश में अब मौत मुकर्रर है लगती दवा नहीँ । हर हाल में करना मुझसे निबाह… Continue reading मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी

अंदर से कोई

अंदर से कोई और ही हैं हम साहब और बाहर से ” मजबूर “|

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