हवा के साथ बहने का मज़ा लेते हैं वो अक्सर, हवा का रुख़ बदलने का हुनर जिनको नहीं आता।
Category: शर्म शायरी
मेरी आँखों में
मेरी आँखों में आँसू की तरह एक रात आ जाओ, तकल्लुफ से, बनावट से, अदा से…चोट लगती है।
मोहब्बत का राज
मोहब्बत का राज उस वक़्त खुल गया, दिल जब उसकी कसम खाने से मुकर गया।
गुज़रे इश्क़ की
गुज़रे इश्क़ की गलियों से और समझदार हो गए, कुछ ग़ालिब बने यहाँ कुछ गुलज़ार हो गए।
क्या इल्जा़म लगाओगे
क्या इल्जा़म लगाओगे मेरी आशिकी पर, हम तो सांस भी तुम्हारी यादों से पूछ कर लेते है..
बदन के घाव दिखा कर
बदन के घाव दिखा कर जो अपना पेट भरता है, सुना है, वो भिखारी जख्म भर जाने से डरता है!
शाम महके तेरे
शाम महके तेरे तसव्वुर से, शाम के बाद फिर सहर महके..
ज़बान कहने से
ज़बान कहने से रुक जाए वही दिल का है अफ़साना, ना पूछो मय-कशों से क्यों छलक जाता है पैमाना !!
कलम खामोश पड़ी है
कलम खामोश पड़ी है मेरी, या तो दर्द दे जाओ या फिर मोहब्बत..
हम इजहार करने मे
हम इजहार करने मे , थोडे ढीले हो गए । और इस बीच उन के, हाथ पीले हो गए.