हम कब के मर चुके

,हम कब के मर चुके थे जुदाई में ऐ अजल….जीना पड़ा कुछ और तेरे इन्तिजार में….

समुद्र बड़ा होकर भी

समुद्र बड़ा होकर भी, अपनी हद में रहता है, जबकि इन्सान छोटा होकर भी अपनी हद भूल जाता है…

कभी कभी धागे

कभी कभी धागे बड़े कमज़ोर चुन लेते है हम ! और फिर पूरी उम्र गाँठ बाँधने में ही निकल जाती है ….!!!

तेरी शब मेरे

तेरी शब मेरे नाम हो जाये नींद मुझ पर हराम हो जाये लौट आता है घर परिन्दा भी इससे पहले कि शाम हो जाये

मैं बुरा हूँ

मैं बुरा हूँ तो बुरा ही सही…. कम से कम शराफत का दिखावा तो नहीं करता..

जो तुम्हारा था

जो तुम्हारा था ही नहीं उसे खोना कैसा,, जब रहना ही है तनहा तो रोना कैसा..

मेरी हर बात का

मेरी हर बात का जवाब रखते हो तुम क्या साथ में कोई किताब रखते हो तुम

मैं बंद आंखों से

मैं बंद आंखों से उसको देखता हूं हमारे बीच में पर्दा नहीं है|

ये सोच कर

ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले..

दीवार क्या गिरी

दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की.. लोगों ने मेरे आँगन से रास्ते बना लिए…

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