तुम्हारी शातिर नजरे

तुम्हारी शातिर नजरे कत्ल करने में माहिर हैं, . . . तो सुन लो. हम भी मर-मर कर जीने में उस्ताद हो गये है।

ख्याल आजाद होते

ख्याल आजाद होते है… पंख तो इच्छाओ के होते है।

बहुत खुश हूँ

मुझपे हंसने की ज़माने को सजा दी जाये … मैं बहुत खुश हूँ ये अफवाह उड़ा दी जाये…

दिखावे की मोहब्बत

दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को हैं हमसे पर, . . ये दिल, . . तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी

हमेशा खामोश रहना..

उस जगह हमेशा खामोश रहना…. जहां , दो कौड़ी के लोग ,, अपनी हैसियत के “गुण-गान” गाते हों….।

अजनबी शहर में

इस अजनबी शहर में ये पत्थर कहाँ से आया फराज़ लोगों की इस भीड़ में कोई अपना जरूर है

बहुत ही सादा हू

बहुत ही सादा हू मैं और ज़माना अय्यार.. खुदा करे कि मुझे शहर की हवा न लगे….

बता देती है

नजरें सब बता देती है नफ़रतें भी, हसरतें भी

तुम्हें भी याद

तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़िज़ूल गया

हर रोज कयामत

तेरे बगैर जीने का तजुर्बा भी हसीन होगा….हर रोज मरूंगा मैं, हर रोज कयामत होगी…..

Exit mobile version