क़ैद ख़ानें हैं

क़ैद ख़ानें हैं , बिन सलाख़ों के कुछ यूँ चर्चें हैं , तुम्हारी आँखों के.

वो कहता है

वो कहता है की बता तेरा दर्द कैसे समझू, मैंने कहा की इश्क़ कर और कर के हार जा !!

चल तलाशते है..

चल तलाशते है.. कोई तरीका ऐसा… मंद हवा भी बहे… और चिराग भी जले…

बुरी आदतें अगर

बुरी आदतें अगर, वक़्त पे ना बदलीं जायें… तो वो आदतें, आपका वक़्त बदल देती हैं|

मोहब्बत ठंड जैसी है

मोहब्बत ठंड जैसी है साहब।।।। लग जाये तो बीमार कर देती है।।

मेरे लफ़्ज़ों को

मेरे लफ़्ज़ों को अब भी नशा है तुम्हारा … निकल कर ज़हन से, कागज़ों पर गिर पड़ते हैं …

मुझे छोड़ के

मुझे छोड़ के जिसके लिए गई थी तुम., सुना है हर बात पर तुम उसे मेरी मिसाल देती हो|

ना लफ़्ज़ों का

ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं, मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले…

किताब-ए-इश्क

किताब-ए-इश्क से इस मसले का हल पुछो…….!! जब कोई अपना रूठ जाये तो क्या करें…….??

गम बिछड़ने का

गम बिछड़ने का नहीं करते खानाबदोश ,वो तो वीराने बसाने का हुनर जानते हैं…….

Exit mobile version