मजबूरियां चुपचाप बोली

मजबूरियां चुपचाप बोली कान में,जिंदगी बेचैनियों का नाम है…।।

पुरानी किताब के

हमारा साथ … पुरानी किताब के पीले पड़ चुके पन्नों से आती सोंधी सी महक जैसा …

पाकिजगी मुहब्बत की

पाकिजगी मुहब्बत की मयस्सर हैं सबको…. दामन-ऐ-वफा में कोई अश्क तो कोई हंसी लिए बैठे हैं !!

मुस्कुरा देते हो

मुस्कुरा देते हो मेरी हर बात पर…. सुनते भी हो…या इश्क हो गया है….!!

और भी है मसले

और भी है मसले इश्क़-ओ-गम के सिवा, उदासी की वजह हर बार मोहब्बत ही तो नहीं होती..

तन्हा कट रही थी

आराम से तन्हा कट रही थी तो अच्छी थी जिंदगी तू कहाँ, दिल की बातों में आ गयी|

तजुर्बा एक ही काफी था

तजुर्बा एक ही काफी था बयान करने के लिए मैने देखा ही नहीं इश्क दोबारा करके !!

सब से ज्यादा

सब से ज्यादा “वजनदार” “खाली जेब” होती है साहब, चलना “मुश्किल” हो जाता है…

ना आसूंओं से

ना आसूंओं से छलकते हैं ना कागज पर उतरते हैं..* *दर्द कुछ होते हैं ऐसे जो बस भीतर ही भीतर पलते है..

उधेड़ देता है

उधेड़ देता है जमाना जब जज़्बात मेरे मैं कलम से अपने हालात रफू कर लेता हूँ।

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