ज़िँदा लाशोँ की भीड़ है

ज़िँदा लाशोँ की भीड़ है चारोँ तरफ… मौत से भी बड़ा हादसा है जिँदगी…

खींचों न कमानों को

खींचों न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो|

कितना मुश्किल है

कितना मुश्किल है ज़िन्दगी का ये सफ़र, खुदा ने मरना हराम किया, लोगों ने जीना !!

पलट चलें के

पलट चलें के ग़लत आ गए हमीं शायद रईस लोगों से मिलने के वक़्त होते हैं|

तेरे ख़्याल ही तो हैं

बस तेरे ख़्याल ही तो हैं…..यार मेरे पास, वरना कौन कमबख्त सूनी राहों पर मुस्कुराता है…!!!

कोई ऐसा कमाल हो जाये

काश कोई ऐसा कमाल हो जाये, .कमबख्त इश्क़ का, इन्तक़ाल हो जाये|

बदनसीबों का कफन

इसे मुहब्बत का दर्दो-गम कहिए या बदनसीबों का कफन कहिए जो खो गया है वही बस है अपना जो बचा है उसे वहम कहिए जब दीवारों में कोई अपना दिखे उसे ही दुनिया में सनम कहिए चाहत में जो आपके लिखता है गजल ऐसे शायर को न बेरहम कहिए

अच्छा है तुम्हारा दिल

अच्छा है तुम्हारा दिल, खवाबो से मान जाता है.. कम्बक्त हमारा दिल है की रूबरू होने को तड़पता है….

ठोकरे खाकर भी

ठोकरे खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब..,,, राह के पत्थर तो अपना फ़र्ज़ अदा करते है…

हमने भी जी है

हमने भी जी है जिंदगी यारों, इश्क़ होने से इश्क़ खोने तक…!!

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