आरजू थी कि

आरजू थी कि एक लम्हा जी लूँ, तेरे कन्धे पै सर रख के, मगर ख्वाब तो ख्वाब हैं पूरे कब होते हैं..

कितनी भूखी होती है

कितनी भूखी होती है गरीब की ज़िन्दगी गरीब के हिस्से का बचपन भी खा जाती है…

काफी नही फ़क़ीरी

काफी नही फ़क़ीरी में दुनिया को छोड़ना, कुछ आपका मिजाज भी ‘रूहानी’ होना चाहिए..

हम कुछ ऐसे

हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं; जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते है…

उनकी तासीर बेहद

उनकी तासीर बेहद कड़वी होती है,,, जिनकी गुफ्तगु ,शक्कर जैसी होती है,

समझनी है जिंदगी

समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो, जीनी है जिंदगी को तो आगे देखो|

ख़त में थे

ख़त में थे ‘मेरे ही ख़त के टुकड़े’ नादान दिल समझ बैठा कि जवाब आया है…

आसमान की ऊँचाई

आसमान की ऊँचाई नापना छोड़ दे… जमीन की गहराई बढ़ा,अभी ओर नीचे गिरेंगे लोग..

एक सेब गिरा

एक सेब गिरा और न्यूटन ने ग्रेविटी की खोज कर ली ! इंसान ही इंसान गिर रहे हैं और कोई मानवता नहीं खोज पा रहा है !

जो देखा ज़िन्दिगी के

जो देखा ज़िन्दिगी के “तमाशे” को गौर से..! हर “आदमी” में और कई—–आदमी मिले..!!

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