हमारी नियत का पता तुम क्या लगाओगे गालिब…. हम तो नर्सरी में थे तब भी मैडम अपना पल्लू सही रखती थी….
Category: गरीबी शायरी
नज़र झुका के
नज़र झुका के जब भी वो गुजरे हैं करीब से.. हम ने समझ लिया कि आदाब अर्ज़ हो गया ..
अपनी आदत नही है
अपनी आदत नही है पुरानी चींजे बदलने की … हम सादगी पे मरने वाले जाहिल लोग है |
याद रखते हैं
याद रखते हैं हम आज भी उन्हें पहले की तरह…कौन कहता है फासले मोहब्बत की याद मिटा देते हैं।
यूँ तो तेरी
यूँ तो तेरी सारी यादें सम्हाली है मैंने जैसे ईदी हो मेरे बचपन की…….
सुकून गिरवी है
सुकून गिरवी है उनके पास, जिनसे मोहब्बत उधार ली थी…
क्या सुनाऊ अपनी
क्या सुनाऊ अपनी जिंदगी की कहानी दोस्तों समुन्दर पर राज किया फिर भी जिंदगी भर प्यासा ही रहा
पनाह मिल गई
पनाह मिल गई रूह को जिस हाथ को छूने भर से…. बस फिर क्या था… उसी हथेली पर मैंने अपनी हवेली बना ली….
आँख खुलते ही
आँख खुलते ही याद आ जाता है तेरा चेहरा, दिन की ये पहली ख़ुशी भी कमाल होती है।
तुम हिदायत से
तुम हिदायत से, अदावत से, शिकायत से ,सही , कम से कम , हमसे , ताल्लुक़ात रखे रहते हो !