एक रूपया एक लाख नहीं होता , मगर फिर भी एक रूपया एक लाख से निकल जाये तो वो लाख भी लाख नहीं रहता हम आपके लाखों दोस्तों में बस वही एक रूपया हैं … संभाल के रखनT , बाकी सब मोह माया है
Category: व्यंग्य शायरी
लकीरें भी बड़ी अजीब होती हैं
लकीरें भी बड़ी अजीब होती हैं—— माथे पर खिंच जाएँ तो किस्मत बना देती हैं जमीन पर खिंच जाएँ तो सरहदें बना देती हैं खाल पर खिंच जाएँ तो खून ही निकाल देती हैं और रिश्तों पर खिंच जाएँ तो दीवार बना देती हैं..
बस के कंडक्टर सी
बस के कंडक्टर सी हो गयी है जिंदगी । सफ़र भी रोज़ का है और जाना भी कही नहीं।…..
कहीं भी यूँ एकटक
कहीं भी यूँ एकटक देखते रहना,, हर आदत तेरी दी हुई लगती हैं।।
इक लफ्ज़ था
इक लफ्ज़ था मैं आधा अधूरा सा, रहबर से जुड़ा और कहानी बन गया !
पेड़ से जाते देखा
पेड़ से जाते देखा मैंने एक परिंदे को याद आ गया तेरा जाना छोड़ कर दिल के घरोंदे को।। काश परिंदा लौट आये।।
कही बार मिलते हैं
कही बार मिलते हैं हम बेवजह, बेवजह हम वजह ढूंड ही लेते हैं।
आँखो के नीचे
आँखो के नीचे..ये काले निशान.. सबूत है. कई राते..खर्च की है.. मैने तुम्हारे लिये..
यूँ लगा जैसे ज़िन्दगी
यूँ लगा जैसे ज़िन्दगी इसे ही कहते हो, जो यूँ भटकते भटकते तूने हाथ थाम लिया।।
हर रोज तरीके से रखता हूँ
हर रोज तरीके से रखता हूँ, हर रोज बिखर जाती हैं। मेरी ज़िन्दगी हो गयी हैं बिलकुल, टेबल पर पड़ी किताबो की तरह।