क़लम के कीड़े हैं

क़लम के कीड़े हैं, हम जब भी मचलते हैं खुरदुरे काग़ज़ पे रेशमी ख्वाब बुनते हैं |

मतलब पड़ा तो

मतलब पड़ा तो सारे अनुबन्ध हो गए…. नेवलों के भी साँपो से सम्बन्ध हो गए…

मन को छूकर

मन को छूकर लौट जाऊँगी किसी दिन… तुम हवा से पूछते रह जाओगे मेरा पता !!…..

अब किसी को भी

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार, घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार..

सुलगती रेत में

सुलगती रेत में पानी की अब तलाश नहीं.. मगर ये कब कहा हमने के हमें प्यास नही..

इश्क करना है

इश्क करना है किसी से तो, बेहद कीजिए, हदें तो सरहदों की होती है, दिलों की नही..!

दावे वो कर रहे थे

दावे वो कर रहे थे हमसे बड़े बड़े छोटी सी इल्तिजा की तो अँगूठा दिखा दिया…

मैं अपनी इबादत

मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है..? किसी फकीर से सुना था मुझमें भी खुदा रहता है…!

कुछ कहता रहूँ

मैं कितना भी कुछ कहता रहूँ , पर हर बात तुम्हारी अच्छी हैं !

चेहरा देख कर

चेहरा देख कर तू मेरा हैसियत का पता मत लगा, “माँ” आज मुझे “मेरा राजा बेटा” कहकर बुलाती है|

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