मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता… तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
Category: वक़्त शायरी
कोई ये कैसे बताये
कोई ये कैसे बताये के वो तन्हा क्यों हैं वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं यही होता है तो आखिर यही होता क्यों हैं |
मुझे निकाल कर
मुझे निकाल कर वो शख़्स मेरे घर में रहा , जिस की शोहरत के लिए मैं सदा सफ़र में रहा…!
मेरे हिस्से की
मेरे हिस्से की दुनिया बनाई ही नहीं गई तेरे नाम की साँसों के संग जी रहा हूँ मैं…
ख़ुद अपना ही साया
ख़ुद अपना ही साया डराता है मुझे, कैसे चलूँ उजालों में बेख़ौफ़ होकर?
वो अकलमंद कभी
वो अकलमंद कभी जोश में नही आता, गले तो लगता है,आगोश मे नही आता।
भूख रिश्तों को
भूख रिश्तों को भी लगती है, प्यार कभी परोस कर तो देखिए।
मिटती है भूख
मिटती है भूख इनके ही दम से जहान की ताक़त है कितनी देखिये लोगो किसान में….
ख़रीद सको न जिसको
ख़रीद सको न जिसको दौलत लूटा कर भी बिक जाता है वो तो केवल एक मुस्कान में !
सितम याद आ रहा है
सितम याद आ रहा है रह रहकर.. मोहब्बत में कितने ज़ालिम सा था वो….