बूढी आँखे पूछती है

बूढी आँखे पूछती है रात और दिन पढ़े लिखे बेटो से…. किन किताबो में लिखा है माँ को तनहा छोड़ दो.

कह दो कोई उन्हें

कह दो कोई उन्हें कि अपना सारा वक्त दे दें मुझे, जी नहीं भरता मेरा जरा जरा सी मुलाकातों से !

फिर तेरी तस्वीर देखी

फिर तेरी तस्वीर देखी तुझको महसूस किया दिल ने फिर से तस्वीर को छुपाकर रख लिया दिल ने….

पास बैठे इंसान के लिए

पास बैठे इंसान के लिए वक्त नहीं है…!!! दूर वाले.. आजकल नजदीक बहुत हैं…

हवाओं की भी

हवाओं की भी अपनी अजब सियासतें हैं ….कहीं बुझी राख भड़का दे कहीं जलते चिराग बुझा दे!

मुश्किल काम दे दिया

अब तो बड़ा मुश्किल काम दे दिया किस्मत ने मुझको, कहती है तुम तो सबके हो गए अब ढूंढो उनको जो तुम्हारे है।

हमको क़तरा कहकर

हमको क़तरा कहकर हँसना ठीक नहीं यार समंदर हम भी पानी वाले हैं

हम नही मानते

हम नही मानते कागज़ पे लिखे सज्र-ओ-नसब, गुफ़्तगू बता देती है कौन खानदानी है..

रोकने में क्यों लगी है

रोकने में क्यों लगी है दुनिया… इश्क़ है, फ़साद थोड़ी है साहब!!

किस की आँखों का

किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं मय-कदे हाथ बढ़ाते हैं जिधर जाते हैं …

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