कोई भी ढांक सका न

कोई भी ढांक सका न, वफा का नंगा बदन ये भिखारन तो हजारों घरों से गुजरी है।। जब से ‘सूरज’ की धूप, दोपहर बनी मुझपे मेरी परछाई, मुझसे फासलों से गुजरी है…

ये महज़ इत्तेफाक है

ये महज़ इत्तेफाक है,या मेरी खता… आज फ़िर किसी को ‘भा’ गया हूँ मैं !

एक चादर साँझ ने

एक चादर साँझ ने जिंदगी पर डाल दी तो क्या, यह अँधेरे की सड़क भोर तक जाती तो जरूर है..!!

यूँ तो बहुत बार

यूँ तो बहुत बार,,,,बहुत कुछ सुनकर खुशी हुई है… लेकिन सबसे बेहतरीन शब्द वो थे जब किसी ने मुस्कराकर कहा था कि, मुबारक हो बेटी हुई है|

मेरी बांहो मे

मेरी बांहो मे सारी खुशीयाँ सिमट जाती है! जब मेरी बेटी मुझसे लिपट जाती है!

किसी के पास

किसी के पास सब कुछ हो तो जलती है दुनिया… किसी के पास कुछ ना हो तो हँसती है दुनिया..!!

तुम आ जाओ

तुम आ जाओ मेरी कलम की स्याही बनकर मैं तुम्हें अपनी ज़िन्दगी के हर पन्ने में उतार दूँ

किसी का हो कर

किसी का हो कर, फिर से खुद का होना बहुत मुश्किल होता है..

सच को तमीज़ ही नहीं

सच को तमीज़ ही नहीं बात करने की.. झूठ को देखो, कितना मीठा बोलता है…

मुझ को मुझ में

मुझ को. मुझ में ही जगह नहीं मिलती.. वो मुझमें मौज़ूद है इस कदर.

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